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जुनेली त्यै शोभामय सुरधुनीमा खलखली नुहाई वा थापी शिर, अटल भै कत्ति नचली।भिजायें बिस्तारै मगज, बहुतै शीतल भयें पछी सुस्तै फेरी नयनयुग माथीतिर दियें।।17।।