Tarun Tapsi


नसा, मासू, हड्डी, रगतहरुको देहगठरी

सदा, फैर्दै बोक्तै थकित भइ चल्दो जुगभरी।

कठै निर्धो दुब्लो गतरुचि अहङ्कारभरिया

ढल्यो तर्नासाथै रज र तमको दीर्घ दरिया।।20।।