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नगीचै त्यै मीठो ध्वनि जलदको साऽऽदर सुनी लतावृक्षद्वारा प्रणयवश रोमाऽऽञ्चित बनी।धरा फेरी हाँसिन्, कुसुमरस वा सौरभ घना थियो मानू सानू मधुर उनको हास्यरचना।।9।।